पणवण्णं पण्णासं तिदाल छादाल सत्ततीसा य ।
चउवीस दुवावीसं सोलसमेगूण जाव णव सत्ता ॥२०॥
पंचपंचाशत् पंचाशत् त्रिचत्वारिंशत् षट्चत्वारिंशत् सप्तिंत्रशच्च ।
चतुर्विंशति: द्विद्वाविंशति: षोडश एकोनं यावन्नव सप्त ॥
अन्वयार्थ : मिथ्यात्व गुणस्थान में ५५, सासादन में ५०, मिश्र में ४३, असंयत में ४६, देशविरत में ३७, प्रमत्त में २४, अप्रमत्त में २२, अपूर्वकरण गुणस्थान में २२, अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के प्रथम भाग में १६, आगे छठे भाग तक एवं आगे नव आस्रव तक १-१ कम करते चलिये अर्थात् द्वितीय भाग में १५, तृतीय में १४, चतुर्थ में १३, पंचम में १२, छठे में ११ आस्रव हैं । वैसे ही दसवें गुणस्थान में १०, उपशांत में ९ और क्षीणकषाय गुणस्थान में ९ आस्रव होते हैं । सयोगकेवली में ७ आस्रव होते हैं ॥२०॥