+ गुणस्थानों में अनास्रवों की संख्या -
दुग सग चदुरिगिदसयं वीसं तियपणदुसहियतीसं च ।
इगिसगअडअडदालं पण्णासा होंति सगवण्णा ॥२१॥
द्वौ सप्त चतुरेकदशकं विंशति: त्रिकपंच-द्विसहितत्रिंशच्च ।
एकसप्ताष्टाष्टचत्वारिंशत् पंचाशत् भवन्ति सप्तपंचाशत् ॥
अन्वयार्थ : प्रथम गुणस्थान में २, द्वितीय में ७, तृतीय में १४, चतुर्थ में ११, पंचम में २०, छठे में ३३, सातवें में ३५, आठवें में ३५, नवमें के प्रथम भाग में ४१, आगे ४७ तक एक-एक बढ़ते चलिये अर्थात् द्वितीय भाग में ४२, तृतीय भाग में ४३, चतुर्थ भाग में ४४, पंचम भाग में ४५, छठे भाग में ४६ आस्रव नहीं होते हैं । दसवें गुणस्थान में ४७, ग्यारहवें में ४८, बारहवें गुणस्थान में ४८, तेरहवें में ५० और चौदहवें में ५७ अनास्रव होते हैं अर्थात् उपर्युक्त आस्रव नहीं
होते हैं ॥२१॥