+ गुणस्थानों में कषाय -
दुसु दुसु पणइगिवीसं सत्तरसं देससंजदे तत्तो ।
तिसु तेरं णवमे सग सुहमेगं होंति हु कसाया ॥२३॥
द्वयो: द्वयो: पंचैकविंशति: सप्तदश देशसंयते तत: ।
त्रिषु त्रयोदश नवमे सप्त सूक्ष्मे एक: भवन्ति हि कषाया: ॥
अन्वयार्थ : दो गुणस्थानों में २५, दो गुणस्थानों में २१, देशसंयत में १७, आगे तीन गुणस्थानों में १३, नवमें गुणस्थान में ७, दसवें में १ कषाय होती है ॥२३॥
इस प्रकार से गुणस्थान में त्रिभंगी समाप्त हुई ।