+ पर्याप्त-अपर्याप्त के आस्रव -
मिस्सतियकम्मणूणा पुण्णाणं पच्चया जहाजोगा ।
मणवयणचउ-सरीरत्तयरहिदा पुण्णगे होंति ॥२५॥
मिश्रत्रिककार्मणोना: पूर्णानां प्रत्यया यथायोग्य: ।
मनोवचनचतु: शरीरत्रयरहिता अपूर्णके भवन्ति ॥
अन्वयार्थ : पर्याप्त अवस्था में औदारिकमिश्र, वैक्रियकमिश्र, आहारकमिश्र और कार्मण से रहित यथायोग्य अपने-अपने गुणस्थानों के अनुसार आस्रव होते हैं एवं अपर्याप्तक अवस्था में चार मनोयोग, चार वचनयोग, औदारिक, वैक्रियक, आहारक ये तीन काययोग, इन ग्यारह योगों से रहित आस्रव होते हैं ॥२५॥