विदि यगुणे णिरयगिंद ण यादि इदि तस्स णत्थि कम्मइयं ।
वेगुव्वियमिस्सं च दु ते होंति हु अविरदे ठाणे ॥२७॥
द्वितीयगुणेन नरकगतिं न याति इति तस्य नास्ति कार्मणं ।
वैक्रियिकमिश्रं च तु तौ भवतो हि अविरते स्थाने ॥
अन्वयार्थ : द्वितीय गुणस्थान से नरकगति में नहीं जाता है अत: नरक में द्वितीय गुणस्थान में कार्मण, वैक्रियकमिश्र नहीं रहते हैं । ये दोनों अविरतगुणस्थान में रहते हैं अर्थात् प्रथम नरक में चौथे गुणस्थान में ही वैक्रियकमिश्रकार्मण रहते
हैं, सम्यग्दृष्टि सम्यक्त्व सहित मरकर पहले नरक तक ही जा सकता है ॥२७॥