भवणतिकप्पित्त्थीणं असंजदठाणे ण होइ कम्मइयं ।
वेगुव्वियमिस्सो वि य तेसिं पुणु सासणे छेदो ॥३३॥
भवनत्रिकल्पस्त्रीणां असंयतस्थाने न भवति कार्मणं ।
वैक्रियिकमिश्रमपि च तयो: पुन: सासादने व्युच्छेद: ॥
अन्वयार्थ : भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिर्वासी देव और कल्पवासी देवियों में चौथे गुणस्थान में कार्मण एवं वैक्रियकमिश्र योग नहीं होता है, इन दोनों का सासादन में व्युच्छेद हो जाता है ॥३३॥