एवं उवरिं णवपणअणुदिसणुत्तरविमाणजादा जे ।
ते देवा पुणु सम्मा अविरदठाणुव्व णायव्वा ॥३४॥
एवं उपरि नवपंचानुदिशानुत्तरविमानजाता ये ।
ते देवा: पुन: सम्यक्त्वा अविरतस्थानवज्ज्ञातव्या: ॥
अन्वयार्थ : इसके ऊपर नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले देव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं अत: इनमें चौथा गुणस्थान ही होता है ॥३४॥
अनुदिश, अनुत्तर में सम्यग्दृष्टि देवों के ४२ आस्रव हैं, चौथा ही गुणस्थान है ।