+ इंद्रिय मार्गणा, कायमार्गणा -
पुंवेदित्थिविगुव्वियहारदुमणरसणचदुहि एयक्खे॥
मणचदुवयणचदूहि य रहिदा अडतीस ते भणिदा ॥३५॥
पुंवेदस्त्रीवैक्रियिकाहारकद्विकमनो१रसनाचतुर्भि: एकाक्षे ।
मनचतुर्वचनचतुर्भिश्च रहिता अष्टात्रिंशते भणिता: ॥
अन्वयार्थ : एकेन्द्रिय जीवों में पुरुषवेद, स्त्रीवेद, वैक्रियकद्विक, आहारकद्विक, स्पर्शन इंद्रिय के सिवाय रसना, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र और मन इन पाँच इंद्रियों की अविरति, चार मनोयोग, चार वचनयोग, इन १९ आस्रव से रहित ३८ आास्रव होते हैं ॥३५॥