इगविगलिंदियजणिदे सासणठाणे ण होइ ओरालं ।
इणमणुभयं च वयणं तेसिं मिच्छेव वोच्छेदो ॥३७॥
एकविकलेन्द्रियजाते सासादनस्थाने न भवति औदारिकं ।
एषामनुभयं च वचनं तयो: मिथ्यात्वे एव व्युच्छेद: ॥
अन्वयार्थ : एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय में उत्पन्न होने वालों के सासादन गुणस्थान में औदारिक योग, अनुभयवचन नहीं होता है अत: इन दोनों की व्युच्छित्ति मिथ्यात्व गुणस्थान में ही हो जाती है ॥३७॥