हारदुगं वज्जित्ता जोगाणं तेरसाणमेगेगं ।
जोगं पुणु पक्खित्ता तेदाला इदरयोगूणा ॥३९॥
आहारद्विकं वर्जयित्वा योगानां त्रयोदशानां एकैकं ।
योगं पुन: प्रक्षिप्य त्रिचत्वारिंशत् इतरयोगोना: ॥
अन्वयार्थ : आहारकद्विक को छोड़कर तेरह योग में जिसमें आस्रव को घटित करना है वह एक योग, पाँच मिथ्यात्व, १२ अविरति और २५ कषाय ये ४३ आस्रव होते हैं, सभी में उस योग के सिवाय शेष योग घट जाते हैं अर्थात् औदारिक काययोग में औदारिक काययोग, ५ मिथ्यात्व , १२ अविरति, २५ कषाय रहते हैं, ऐसे तेरह योगों में सभी में अपना-अपना योग मिलाकर शेष घटा देने से ४३-४३ आस्रव होते हैं ॥३९॥