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गन्‍धमित्र की कथा

  कथा 

कथा :

अनन्त गुण-विराज मान और संसार का हित करने वाले जितेन्‍द्र भगवान् को नमस्‍कार कर गन्‍धमित्र राजा की कथा लिखी जाती है, जो घ्राणेन्द्रिय के विषय में फँसकर अपनी जान गँवा बैठा है ।



अयोध्‍या के राजा विजय सेन और रानी विजयवती के दो पुत्र थे । इनके नाम थे जयसेन और गन्‍धमित्र । इन में गन्‍धमित्र बड़ा लम्‍पटी था । भौंरे की तहर नाना प्रकार के फूलों के सूंघने में वह सदा मस्‍त रहता था ।

इनके पिता विजयसेन एक दिन कोई कारण देखकर संसार से विरक्त हो गये । इन्‍होंने अपने बड़े लड़के जयसेन को राज्‍य देकर और गन्‍धमित्र को युवराज बनाकर सागर सेन मुनिराज से योग ले लिया । सच है, जो अच्‍छे पुरूष होते हैं उनकी धर्म की ओर स्‍वभाव ही से रूचि होती है ।

जयसेन के छोटे भाई गन्‍धमित्र को युवराज पद अच्‍छा नहीं लगा । इसलिए कि उसकी महत्‍वाकांक्षा राजा होने की थी तब उसने राज्‍य के लोभ में पड़कर अपने बड़े भाई के विरूद्ध षड्यंत्र रचा । कितने ही बड़े-बड़े कर्मचारियों को उसने धन का लोभ देकर उभारा, प्रजा में से भी बहुतों को उल्‍टी-सीधी सुझाकर बहकाया । गन्‍धमित्र कों इसमें सफलता प्राप्‍त हुई । उसने मौका पाकर बड़े भाई जयसेन को सिंहासन से उतार राज्‍य बाहर कर दिया और आप राजा बन बैठा । लोभ में पड़कर मूर्खजन अपने सगे भाई की जान तक लेने की कोशिश में रहते हैं ।

राज्‍य-भ्रष्‍ट जयसेन को अपने भाई के इस अन्‍याय से बड़ा दु:ख हुआ । इसका उसे ठीक बदला मिले, इस उपाय में अब वह भी लगा । प्रतिहिंसा से अपने कर्त्तव्‍य को वह भूल बैठा । उस दिन का रास्‍ता वह बड़ी उत्‍सुकता से देखने लगा जिस दिन गन्‍धमित्र को वह ठार मार कर अपने हृदय को सन्‍तुष्‍ट करे ।

गन्‍धमित्र लम्‍पटी तो था ही, सो वह रोज-रोज अपनी स्त्रियों साथ लिए जाकर सरयू नदी में उनके साथ जलक्रीड़ा हँसी, दिल्‍लगी किया करता था । जयसेन ने इस मौके को अपना बदला चुकाने के लिए बहुत ही अच्‍छा समझा । एक दिन उसने जहर के पुट दिये अनेक प्रकार के अच्‍छे-अच्‍छे मनोहर फलों को ऊपर की ओर से नदी में बहा‍दिया । फूल गन्‍धमित्र के पास होकर बहे जा रहे थे । गन्‍धमित्र उन्‍हें देखते ही उनके लेने के लिए झपटा । कुछ फूलों को हाथ में ले वह सूँघने लगा । फूलों के विष का उस पर बहुत जल्‍दी असर हुआ और देखते-देखते वह चल बसा । मर कर गन्‍धमित्र घ्राणेद्रिय के विषय की अत्‍यन्‍त लालसा से नरक गया । सो ठीक है, इंद्रियों के अधीन हुए लोगों का नाश होता ही है ।

देखिये, गन्‍धमित्र केवल एक विषय का सेवन कर नरक में गया, जो कि अनन्‍त दु:खों का स्‍थान है । तब जो लोग पाँचों इन्द्रियों के विषयों का सेवन करने वाले हैं, वे क्‍या नरकों में न जायँगे ? अवश्‍य जांयगे । इसलिए जिन बुद्धिमानों को दु:ख सहना अच्‍छा नहीं लगता या वे दु:खों को चाहते ही नहीं, तो उन्‍हें विषयों को ओर से अपने मन को खींच कर जिनधर्म की ओर लगाना चाहिये ।