
कथा :
सारे संसार द्वारा भक्ति सहित पूजा किये गये जिनभगवान् को नमस्कार कर प्राचीनाचार्यों के कहे अनुसार मृगध्वज राजकुमार की कथा लिखी जाती है । सीमन्धर अयोध्या के राजा थे । उनकी रानी का नाम जिनसेना था । इनके एक मृगध्वज नामका पुत्र था । यह माँस का बड़ा लोलुपी था । इसे बिना मांस खाये एक दिन भी चैन न पड़ता था । यहाँ एक राजकीय भैंसा था । वह बुलाने से पास चला आता, लौट जाने को कहने से चला जाता और लोगों के पाँवों में लोटने लगता । एक दिन यह भैंसा एक तालाब में क्रीड़ा कर रहा था । इतने में राजकुमार मृगध्वज, मंत्री और सेठ के लड़कों को साथ लिए यहाँ आया । इस भैंस के पाँवों को देखकर मृगध्वज के मन में न जाने क्या धुन समार्इ सो इसने अपने नौकर से कहा -- देखो, आज इस भैंस का पिछला पाँव काटकर इसका मांस खाने को पकाना । इतना कहकर मृगध्वज चल दिया । उसका मांस पका । उसे खाकर राजकुमार और उसके साथी बड़े प्रसन्न हुए । इधर बेचारा भैंसा बड़े दु:ख के साथ लॅगड़ाता हुआ राजा के सामने जाकर गिर पड़ा । राजा ने देखा कि उसकी मौत आ लगी है । इसलिए उस समय उसने विशेष पूछताछ न कर, कि किसने उसकी ऐसी दशा की है, दयाबुद्धि से उसे संन्यास देकर नमस्कार मन्त्र सुनाया । सच है, संसार में बहुत से ऐसे भी गुणवान परोपकारी हैं, जो चन्द्रमा, सूर्य, कल्पवृक्ष, पानी आदि उपकार के वस्तुओं से भी बढ़कर हैं । भैंसा मरकर नमस्कार मन्त्र के प्रभाव से सौधर्म स्वर्ग में जाकर देव हुआ । सच है, जिनेन्द्रभगवान् का उपदेश किया पवित्र धर्म जीवों का वास्तव में हित करने वाला है । इसके बाद राजा ने इस बात का पता लगाया कि भैंसे की यह दशा किसने की । उन्हें जब यह नीच काम अपने और मंत्री तथा सेठ के पुत्रों का जान पड़ा तब तो उनके गुस्से का कुछ ठिकाना न रहा । उन्होंने उसी समय तीनों को मरवा डालने के लिए मंत्री को आज्ञा की । इस राजाज्ञा की खबर उन तीनों को भी लग गर्इ । तब उन्होंने झटपट मुनिदत्त मुनि के पास जाकर जिनदीक्षा ले ली । इनमें मृगध्वज महामुनि बड़े तपस्वी हुए । उन्होंने कठिन तपस्या कर ध्यानाग्नि द्वारा घातिया कर्मों का नाश किया और केवलज्ञान प्राप्त कर संसार द्वारा वे पूज्य हुए । सच है, जिन-धर्म का प्रभाव ही कुछ ऐसा अचिन्त्य है जो महा-पापी से पापी भी उसे धारणकर त्रिलोक-पूज्य हो जाता है और ठीक भी है, धर्म से और उत्तम है ही क्या? वे मृगध्वज मुनि मुझे और आप भव्य-जनों को महा-मंगलमय मोक्ष लक्ष्मी दें, जो भव्य-जनों का उद्धार करनेवाले हैं । केवलज्ञान रूपी अपूर्व नेत्र के धारक हैं, देवों, विद्याधरों और बड़े-बड़े राजों-महाराजाओं से पूज्य हैं, संसार का हित करनेवाले हैं, बड़े धीर हैं, और अनेक प्रकार का उत्तम से उत्तम सुख देनेवाले हैं । |