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पणिक मुनि की कथा

  कथा 

कथा :

सुख के देनेवाले और सत्पुरूषों से पूजा किये गये जिनेन्द्र भगवान को नमस्कार कर श्रीपणिक नाम के मुनि की कथा लिखी जाती है, जो सब का हित करने वाली है ।

पणीश्वर नामक शहर के राजा प्रजापाल के समय वहाँ सागरदत्त नाम का एक सेठ हो चुका है । उसकी स्त्री का नाम पणिका था । इसके एक लड़का था । उसका नाम पणिक था । पणिक सरल, शान्त और पवित्र हृदय का था । पाप कभी उसे छू भी न गया था । सदा अच्छे रास्ते पर चलना उसका कर्त्तव्य था । एक दिन वह भगवान के समवशरण में गया जो कि रत्नों के तोरणों से बड़ी ही सुन्दरता धारण किये हुए था और अपनी मानस्तंभादि शोभा से सब के चित्त को आनन्दित करनेवाला था । वहाँ उसने वर्द्धमान भगवान को गंधकुटी पर विराजे हुए देखा । भगवान की इस समय की शोभा अपूर्व और दर्शनीय थी । वे रत्न जड़े सोने के सिंहासन पर विराजे हुए थे । पूनम के चन्द्रमा को शर्मिन्दा करनेवाले तीन-छत्र उन पर शोभा दे रहे थे । मोतियों के हार के समान उज्जवल और दिव्य चँवर उनपर ढुर रहे थे, एक साथ उदय हुए अनेक सूर्यों के तेज को जिनके शरीर की कान्ति दबाती थी, नाना प्रकार की शंकाओं को मिटाने वाली दिव्य-ध्वनि द्वारा उपदेश कर रहे थे देवों के बजाये दुन्दुभि नाम के बाजों से आकाश और पृथ्वी-मण्डल शब्दमय बन गया था इन्द्र-नागेन्द्र-चक्रवर्ती-विद्याधर और बड़े-बड़े राजे महाराजे आदि आ आकर जिनकी पूजा करते थे अनेक निर्ग्रन्थ मुनिराज स्तुति कर अपने को कृतार्थ कर रहे थे, चौतीसप्रकारकेअतिशयोसेजो सुशोभित थे, अनंतदर्शन, अनंतज्ञान, अनंतसुख और अनंतवीर्य ऐसे चार अनन्त चतुष्टय आत्म-सम्पत्ति को धारण किये थे, जिन्हें संसार के सर्वोच्च महापुरूष का सम्मान प्राप्त था, तीनों लोकों की स्पष्ट देख-जानकर उसका स्‍वरूप भव्य-जनों को जो उपदेश कर रहे थे और जिनके लिये मुक्ति-रमणी वरमाला हाथ में लिए उत्सुक हो रही थी ।

पणिक ने भगवान् का ऐसा दिव्य-स्वरूप देखकर उन्हें अपना सिर नवाया, उनकी स्तुति-पूजा की, प्रदक्षिणा दी और बैठकर धर्मोपदेश सुना । अन्त में उसने अपनी आयु बहुत थोड़ी जान पड़ी । ऐसी दशा में आत्महित करना बहुत आवश्यक समझ पणिक वहीं दीक्षा ले साधु हो गया । यहाँ से विहार कर अनेक देशों और नगरों में धर्मोपदेश करते हुए पणिक मुनि एक दिन गंगा किनारे आये । नदी पार होने के लिये ये एक नाव में बैठे । मल्लाह नाव खेये जा रहा था कि अचानक एक प्रलय की सी आँधी ने आकर नाव का खूब डगमगा दिया, उसमे पानी भर आया, नाव डूबने लगी । जबतक नाव डूबती है पणिक मुनि ने अपने भावों को खूब उन्नत किया । यहाँ तक कि उन्हें उसी समय केवल ज्ञान हो गया और तुरन्त ही वे अघातिया कर्मों का नाश कर मोक्ष चले गये । वे सेठ पणिक मुनि मुझे भी अविनाशी मोक्ष-लक्ष्मी दें, उन्होंने मेरू-समान स्थिर रहकर कर्म शत्रुओं का नाश किया ।

सागरदत्त सेठ की स्त्री पणिका सेठानी के पुत्र पवित्रात्मा पणिक मुनि वर्द्धमान भगवान के दर्शन कर, जो कि मोक्ष के देने वाले हैं, और उनसे अपनी आयु बहुत ही थोड़ी जानकर संसार की सब माया-ममता छोड़ मुनि हो गये और अन्त में कर्मों का नाश कर मोक्ष गये, वे मुझे भी सुखी करें ।