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धर्मघोष मुनि की कथा

  कथा 

कथा :

सत्य धर्म का उपदेश करनेवाले अतएव सारे संसार के स्वामी जिनेन्द्र भगवान को नमस्कार कर श्रीधर्मघोष मुनि की कथा लिखी जाती है ।

एक महीना के उपवासे धर्ममूर्ति श्री धर्मघोष मुनि एक दिन चम्पापुरी के किसी मुहल्ले में पारणा कर तपोवन की ओर लौट रहे थे । रास्ता भूल जाने से उन्हें बड़ी दूर तक हरी हरी घास पर चलना पड़ा । चलने में अधिक परिश्रम होने से थकावट के मारे उन्हें प्यास लग आर्इ । वे आकर गंगा के किनारे एक छायादार वृक्ष के नीचे बैठ गये । उन्हें प्यास से कुछ व्याकुल से देखकर गंगा देवी पवित्र जल का भरा लोटा लेकर उनके पास आर्इ । वह उनसे बोली योगिराज मैं आपके लिए ठंडा पानी लार्इ हूँ । आप इसे पीकर प्यास शान्त कीजिए । मुनि ने कहा – देवी तूने अपना कर्त्तव्य बजाया यह तेरे लिए उचित ही था पर हमारे लिए देवों द्वारा दिया गया आहार पानी काम नहीं आता । देवी सुनकर बड़ी चकित हुर्इ । वह उसी समय इसका करण जानने के लिए विदेह-क्षेत्र में गर्इ और वहाँ सर्वज्ञ-भगवान को नमस्कार कर उसने पूछा भगवान एक प्यासे मुनि को मैं जल पिलाने गर्इ पर उन्होंने मेरे हाथ का पानी नहीं पिया इसका क्या कारण है ? तब भगवान ने इसके उत्तर में कहा – देवों का दिया आहार मुनि लोग नहीं कर सकते । भगवान से उत्तर सुन देवी निरूपाय हुर्इ । तब उसने मुनि को शान्ति प्राप्त हो इसके लिए उनके चारों ओर सुगन्धित और ठण्डे जल की वर्षा करना शुरू की । उससे मुनि को शान्ति प्राप्त हुर्इ । इसके बाद शुक्ल-ध्यान द्वारा घातिया कर्मों का नाश कर उन्होंने केवल भव्य जनों को आत्महित के रास्ते पर लगाकर अन्त में उन्होंने निर्वाण लाभ किया ।

वे धर्मघोष मुनिराज आपको तथा मुझे भी सुखी करें, जो पदार्थों की सूक्ष्म से सूक्ष्म स्थिति देखने के लिए केवल-ज्ञान रूपी नेत्र के धारक हैं, भव्यजनों को हितमार्ग में लगाने वाले हैं, लोक तथा अलोक के जानने वाले हैं, देवों द्वारा पूजा किये जाते हैं और भव्यजनों के मिथ्यात्व मोह रूपी गाढ़े अन्धकार को नाश करने के लिए सूर्य हैं ।