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श्रद्धायुक्त मनुष्य की कथा

  कथा 

कथा :

निर्मल केवल ज्ञान द्वारा सारे संसार के पदार्थों को प्रकाशित करने वाले जिन भगवान् को नमस्कार कर श्रद्धागुण के धारी विनयंधर राजा की कथा लिखी जाती है जो कथा सत्पुरूषों को प्रिय है ।

कुरूजांगल देश की राजधनी हस्तिनापुर का राजा विनयधर था । उसकी रानी का नाम विनयवती था । यहाँ वृषभसेन नाम का सेठ रहता था। इसकी स्त्री का नाम वृषभसेना था । इसके जिनदास नाम का एक बुद्धिमान पुत्र था ।

विनयंधर बड़ा कामी था । सो एक वार इसके कोर्इ महारोग हो गया । सच है, ज्यादा मर्यादासे बाहर विषय सेवन भी उल्टा दु:ख का ही कारण होता है । राजा ने बड़े-बड़े वैद्यों का इलाज करवाया पर उसका रोग किसी तरह न मिटा । राजा इस रोग से बड़ा दु:खी हुआ । उसे दिन रात चैन न पड़ने लगा ।

राजा का एक सिद्धार्थ नाम का मंत्री था । यह जैनी था । शुद्ध सम्यग्दर्शन का धारक था । सो एक दिन इसने पादौषधिऋद्धि के धारक मुनिराज के पाँव प्रक्षालन का जल लेकर, जो कि सब रोगों का नाश करनेवाला होता है, राजाको दिया । जिन भगवान् के सच्चे भक्त उस राजाने बड़ी श्रद्धा के साथ उस जल को पी-लिया । उसे पीने से उसका सब रोग जाता रहा । जैसे सूरज के उगने से अन्धकार जाता रहता है । सच है, महात्माओं के तपके प्रभावकी कौन कह सकता है, जिनके कि पाँव धोने के पानी से ही सब रोगों की शान्ति हो जाती है । जिस प्रकार सिद्धार्थ मन्त्री ने मुनि के पाँव प्रक्षालन का पवित्र जल राजा को दिया, उसी प्रकार अन्य भव्यजनों को भी उचित है कि वे धर्मरूपी जल सर्व-साधारण को देकर उनका संसार ताप शान्त करें । जैनतत्व के परम विद्वान के पादौषधिऋद्धि के धारक मुनिराज मुझे शान्ति-सुख दें ।

जैनधर्म में या जैनधर्म के अनुसार किये जाने वाने दान, पूजा, व्रत, उपवास आदि पवित्र कार्यो में की हुर्इ श्रद्धा, किया हुआ विश्वास दु:खों का नाश करने वाला है । इस श्रद्धा का आनुषङ्गिक फल है-इन्द्र, चक्रवर्ती, विद्याधर आदि की सम्पदा का लाभ और वास्तविक फल है मोक्ष का कारण केवलज्ञान, जिसमें कि अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य ये चार अनन्तचतुष्टय आत्मा की खास शक्तियाँ प्रगट हो जाती है । वह श्रद्धा आप भव्यजों का कल्याण करें ।