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भरतक्षेत्र का मगधदेश

  कथा 

कथा :

जिस भरतक्षेत्र का हम अवलोकन करने जा रहे हैं, उसमें एक मगध नाम का प्रसिद्ध देश है। उस देश की प्रजा भोग-संपदाओं से सदा प्रसन्न हो नित्य उत्सव किया करती रहती है। वहाँ मेघों की सदा प्रसन्नता रहती है अर्थात् योग्य समय पर यथायोग्य वर्षा हुआ करती है। न अतिवृष्टि होती है और न अनावृष्टि तथा अनीति के प्रचार से भी वह देश शून्य है। राजाओं द्वारा प्रजा भी कर से मुक्त होने के कारण बाधारहित है। वहाँ सदा सुकाल वर्तता है। वहाँ के खेत एवं वृक्ष सदा धान्य एवं फलों को प्रदान करते रहते हैं।

जैसे - गुणवान ज्ञानीजन भव्यों के हृदय को आनंददायिनी वीतरागता की सौरभ सदा देते रहते हैं, वैसे ही मानो वहाँ के वृक्ष फलों से लदे हुए नम्रीभूत हो जगतजनों की क्षुधा शमन करने के लिए प्रेरणा करते रहते हैं, तथा पुष्प भी मंद-मंद सुगंध महकाते रहते हैं, पथिकगण भी मनमोहक वृक्षों की शीतल छाया का आनंद लाभ प्राप्त करते हैं। वहाँ के कूप और सरोवर जल से भरे हुए होने से मनुष्यों के आताप को हरते रहते हैं। निर्मल एवं शीतल जल से भरपूर वापिकाएँ मनुष्यों को उनकी तृषा बुझाने के लिये आह्वान करती हैं तथा उनके तटों पर स्थित वृक्ष अपनी छाया से सूर्यकृत आताप को हरते हैं।

उस देश की नदियाँ अपनी कलरव ध्वनि से युक्त जलराशि से परिपूर्ण अपनी टेढ़ी-मेढ़ी गति से दूर तक बह रही हैं, जिससे मनुष्य एवं पशु-पक्षी अपनी प्यास की तृप्ति का लाभ उठाते हैं। झीलों के तटों पर हंस कमल की दंडी के साथ कल्लोल कर रहे हैं। वनों में बड़े-बड़े मल्ल हाथी विचर रहे हैं। वहाँ बड़े-बड़े स्कंधधारी दृढ़ वृषभ, जिनके सींगों में कर्दम लगा हुआ है, वे थल-कमलों को देखकर पृथ्वी को खोदते रहते हैं। उस देश में स्वर्गपुरी समान नगर हैं, कुरुक्षेत्र समान चौड़ी सड़कें हैं, स्वर्ग-विमान समान, सुन्दर घर हैं, देवों समान प्रजा सुखपूर्वक वास करती हुई शोभायमान हो रही है।

उस देश में कहीं भी आज्ञा-भंग एवं आतंक-उपद्रव का लेश भी नहीं है। हाँ, यदि कहीं भंग दीखने में आता है तो जल तरंगों में ही दीखता है। प्रजा मदशून्य है, यदि कहीं मद है तो हाथियों में है। प्रजा भवभीरु, सरल और निश्छल होने से दंड कहीं नजर ही नहीं आता। हाँ! यदि दंड कहीं दृष्टिगत होता है तो राजा के छत्र में। सरोवरों में तो जल का समूह है, लेकिन कोई नगर जलमग्न नहीं होता। गायें आदि भी योग्य समय पर संतान जन्म कर मनुष्यों को दूध देकर तृप्त करती हैं। मगधदेश की नारियाँ स्वभाव से सरल एवं सुन्दर हैं और पुरुष भी स्वभाव से चतुर हैं। देव-शास्त्र-गुरु की पूजा आदि तथा पात्रदान आदि में अति प्रीतिवंत हैं। ब्रह्मचर्य पालने में, व्रत-उपवास आदि करने में शक्तिशाली एवं रुचिवंत हैं। इत्यादि अनेक प्रकार की विशेषताओं से युक्त हैं। इससे यह विदित होता है कि श्रावकों में श्रावकोचित षट्कर्म एवं धर्म के प्रचार-प्रसार का कार्य अनादि से चला आ रहा है।