कथा :
इसी मगध देश के एक भाग में राजगृही नगरी शोभायमान है। जहाँ के प्रासादों पर तपाये हुए सुवर्ण के समान कलश चमकते हैं और राजसुभट इन्द्रों के समान शोभते हैं। नगरवासियों को कलशों की चमक में ऐसी भ्रांति हो जाया करती है कि मानो आकाश में चन्द्रमा चमक रहे हों। वहाँ शिखरबंदी गगनचुम्बी जिनालय एवं उन पर लहराती हुई पताकायें मानो जगतजन को धर्म-उपासना के लिये आह्वाहन कर रही हैं। वहाँ के महल और उनकी खिड़कियों एवं झरोखों में से बाहर की छटा को निरखने वाली महिलायें ऐसी शोभित हो रही हैं, जैसे सरोवर कमलों से शोभता है। जिसप्रकार जिनेन्द्र भगवान के तेज के सामने करोड़ों सूर्य भी शरमा जाते हैं, उसीप्रकार, स्वर्गलोक की देवियाँ भी राजगृही की नारियों की सुन्दरता के सामने शरमा जाती है। इत्यादि अनेक उपमायुक्त वह नगर है। |