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द्वितीय दिन कथा

  कथा 

कथा :

द्वितीय कथा

द्वितीय दिने तथैव राज्ञ: पार्श्व आगतो यमदण्डो राज्ञा पृष्ट:-रे यमदण्ड! चौरो दृष्टस्त्वया? तेनोक्तं-हे महाराज! न मया चौरो दृष्ट: । राज्ञोक्तम्-किमर्थं कालातिक्रम: कृत: । तेनोक्तम्- एकस्मिन्मार्गे एकेन कुम्भकारेण कथा कथिता । सा मया श्रुता, अतएव कालातिक्रमो जात: । राज्ञोक्तम्-सा कथा ममाग्रे निरूपणीया यया तव भयं विस्मृतम् । यमदण्डेनोक्तम्-तथास्तु, तद्यथा-अस्मिन्नगरे पाल्हण-नामा कुम्भकारो निजविज्ञाननिपुणोऽस्ति । स प्रजापतिराजन्मतो नगरासन्न-मृत्खनि-सकाशान्मृत्तिकामानीय विविधानि भाण्डानि निर्माय निर्माय विक्रीणाति । कालेन धनवान् जज्ञे, पश्चात्तेन भव्यं गृहं कारयितम् पुत्रादिसन्ततिर्विवाहिता सर्वेषां भिक्षुवराणां सत्यां भिक्षां ददाति याचकानां भोजनादिं च । क्रमेण स्वजातिमध्ये महत्तरो जात: । एकदा रासभीं सज्जीकृत्य मृत्खनिं मृत्तिकार्थं गत:, तस्य खनिं खनतस्तटी निपतिता, व्या कटिर्भग्ना ।

पश्चात्तेन पठितम्-


द्वितीय दिन कथा


यमदण्ड दूसरे दिन उसी प्रकार राजा के पास आया और राजा ने उससे पूछा-हे यमदण्ड तूने चोर को देखा? यमदण्ड ने कहा - हे महाराज! मैंने चोर नहीं देखा । राजा ने कहा - समय का उल्लङ्घन किसलिए किया? उसने कहा - मार्ग में एक कुम्भकार ने कथा कही उसे मैंने सुना इसी से समय का उल्लङ्घन हो गया । राजा ने कहा - वह कथा मेरे आगे कही जाने योग्य है जिसके द्वारा तुम अपना भय भूल गये । यमदण्ड ने कहा - अच्छी बात है कहता हूँ-

इस नगर में एक पाल्हण नाम का कुम्हार है जो अपने कार्य में अत्यन्त निपुण है । यह कुम्हार जन्म से ही लेकर नगर की निकटवर्ती मिट्टी की खान से मिट्टी लाकर नाना प्रकार के बर्तन बना- बना कर बेचता है । समय पाकर वह धनवान हो गया । पश्चात् उसने एक अच्छा भवन बनवा लिया, पुत्रादि सन्तति को विवाहित कर लिया । वह समस्त उत्तम भिक्षुओं को उत्तम भिक्षा देता है और याचकों के लिए भोजनादिक । क्रम से वह अपनी जाति के बीच बहुत बड़ा प्रधान हो गया । एक समय गधी को सुसज्जितकर मिट्टी लेने के लिए मिट्टी की खान पर गया । वहाँ खान को खोदते समय उसके ऊपर खान का किनारा गिर पड़ा जिससे उसकी कमर भग्न हो गई । पश्चात् उसने पढ़ा ।

जेण भिक्खं वलिं देमि जेण पोसेमि अप्पयं ।
तेण मे कडिआ भग्गा जादं सरणदो भयम् ॥86॥
जिस खान से मैं भिक्षा और भोजनादि देता था तथा जिससे अपने आपका पोषण करता था उस खान से मेरी कमर टूट गयी शरण से ही भय हो गया-रक्षक ही भय उत्पन्न करने वाला हो गया ॥86॥

एवं सूचिताभिप्रायं राजा न जानाति । इत्याख्यानं कथयित्वा यमदण्डो निजगृहं प्रति गत:॥ इति द्वितीयं दिनगतम् ।

॥ इति द्वितीय दिन कथा॥


इस प्रकार सूचित अभिप्राय को राजा नहीं जान सका । यमदण्ड यह कथा कहकर अपने घर चला गया । इस प्रकार दूसरा दिन व्यतीत हुआ॥