+ सर्वज्ञ की व्यवस्था -
सूक्ष्मांतरितदूरार्था:, प्रत्यक्षा: कस्यचिद्यथा
अनुमेयत्वतोऽग्न्यादिरिति सर्वज्ञसंस्थिति: ॥5॥
अन्वयार्थ : [सूक्ष्मांतरित दूरार्था: कस्यचित् प्रत्यक्षा:] सूक्ष्म, अंतरित और दूरवर्ती पदार्थ किसी के प्रत्यक्ष अवश्य हैं [अनुमेयत्वत:] क्योंकि ये अनुमान ज्ञान के विषय हैं [यथा अग्न्यादि:] जैसे अग्नि आदि पदार्थ अनुमान ज्ञान के विषय हैं अत: किसी के प्रत्यक्ष अवश्य हैं [इति सर्वज्ञसंस्थिति:] इस प्रकार से सर्वज्ञ की सम्यक् प्रकार से स्थिति सुघटित है ॥५॥

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


सूक्ष्म वस्तु परमाणु आदि, अंतरित राम-रावण आदिक;;दूरवर्ति हिमवन सुमेरु ये, हैं प्रत्यक्ष किसी के नित;;क्योंकि ये अनुमेय कहे हैं, जैसे अग्न्यादिक अनुमेय;;इस अनुमान प्रमाण कथित, सर्वज्ञ व्यवस्था है स्वयमेव
सूक्ष्म, अन्तरित और दूरवर्ती पदार्थ किसी न किसी के प्रत्यक्ष अवश्य हैं क्योंकि वे अनुमान-ज्ञान के विषय हैं जैसे अग्नि आदि, इस प्रकार से सर्वज्ञ सिद्धि होती है ।
  1. सूक्ष्म--स्वभाव से परोक्ष परमाणु आदिक,
  2. अन्तरित--काल से परोक्ष राम, रावण आदिक,
  3. दूरवर्ती--देश से परोक्ष हिमवान पर्वत, सुमेरु आदिक;
ये किसी न किसी के प्रत्यक्ष अवश्य हैं क्योंकि अनुमेय हैं, जैसे अग्नि आदिक । इस अनुमान वाक्य से सर्वज्ञ की सम्यक् प्रकार से सिद्धि होती है ।