+ आप ही निर्दोष सर्वज्ञ हैं -
स त्वमेवासि निर्दोषो, युक्तिशास्त्राऽविरोधिवाक्
अविरोधो यदिष्टं ते, प्रसिद्धेन न बाध्यते ॥6॥
अन्वयार्थ : [स: निर्दोष: त्वमेव असि] हे भगवन् ! वह निर्दोष सर्वज्ञ आप ही हैं [युक्तिशास्त्राऽविरोधिवाक्] आपके वचन तर्क और आगम से विरोध-रहित हैं । [ते यत् इष्टं अविरोध:] और जो यह आपका इष्ट मत है वह अविरोधी है [प्रसिद्धेन न बाध्यते] क्योंकि वह प्रसिद्ध (प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों) से बाधित नहीं होता है ॥६॥

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


वह रागादिक दोष रहित, सर्वार्थविज्ञ प्रभु तुम्हीं कहे;;क्योंकि तुम्हारे वचन युक्ति, आगम से अविरोधी नित हैं;;प्रत्यक्षादि प्रमाणों से तव, तत्त्व अबाधित हैं जग में;;अत: प्रभो! यह शासन तेरा, नित अविरोधी जन जन में॥६॥
हे भगवन् ! दोष और आवरण से रहित निर्दोष सूक्ष्मादि पदार्थों को प्रत्यक्ष जानने वाले एवं युक्ति-शास्त्र (तर्क व आगम) से अविरोधी वचन को बोलने वाले अर्हंत परमात्मा आप ही हैं क्योंकि आपका इष्ट (मत) विरोध रहित है उसमें प्रत्यक्ष, अनुमान आदि किसी भी प्रमाण से बाधा नहीं आती है ॥६॥