ज्ञानमती :
नाथ! स्वपर वैरी एकांत-ग्रह पीड़ित जन के मत में;;शुभ अरु अशुभ क्रिया परलोका-दिक फल भी नहिं बनते हैं;;पुण्य-पाप फल बंध-मोक्ष की, नहीं व्यवस्था भी बनती;;क्योंकि सर्वथा नित्य-क्षणिक में, अर्थ क्रिया ही नहिं घटती
हे नाथ! नित्य अथवा अनित्य आदि एकान्त मान्यता का दुराग्रह करने वाले ऐसे स्व एवं पर के बैरी-शत्रु मिथ्यादृष्टि जनों में से किसी के यहाँ भी कुशल-पुण्य, अकुशल-पाप क्रियाएँ तथा परलोकादि की व्यवस्था भी नहीं बन सकती है ॥८॥
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