+ अभावैकान्त की मान्यता में दोष -
अभावैकांत-पक्षेऽपि, भावापन्हव-वादिनाम्
बोधवाक्यं प्रमाणं न, केन साधनदूषणम् ॥12॥
अन्वयार्थ : [अभावैकांत पक्षेऽपि भावापन्हववादिनां] यदि एकांत से सभी वस्तु को अभाव रूप ही स्वीकार किया जावे, तब तो भावों का सर्वथा अभाव करने वाले इन वादियों के यहाँ [बोधवाक्यं प्रमाणं न केन साधनदूषणम्] ज्ञान और आगम दोनों का भी अभाव होने से दोनों प्रमाण नहीं रहेंगे । पुन: किसके द्वारा अपने पक्ष का साधन और पर के पक्ष में दूषण दिया जावेगा ॥१२॥

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


यदि सब वस्तु अभावरूप हैं, शून्यवाद जन के मत में;;तब तो भाव-पदारथ किंचित्, नहिं प्रतिभासित हों जग में;;ज्ञान और आगम भी किंचित्, नहिं प्रमाण होंगे तब तो;;कैसे अपने मत का साधन, परमत दूषण किससे हो
हे भगवन् ! पदार्थ का सर्वथा अपलाप करने वाले अभावैकांतवादी माध्यमिक-बौद्धों के यहाँ भी ज्ञान एवं वाक्य भी नहीं रहेंगे और पुन: बोध-वाक्यों की प्रमाणता न होने से वे लोग स्वपक्ष का साधन और परपक्ष का दूषण भी कैसे कर सकेंगे ?

जब किसी वस्तु का सद्भाव ही नहीं है, सभी वस्तुओं का अभाव ही अभाव है, तब तो स्वार्थानुमान रूप ज्ञान एवं आगम आदि भी कहाँ रहेंगे ? और जब किसी वस्तु का ज्ञान, वचनों से उनका प्रतिपादन ही नहीं रहेगा, तब अपने शून्यवाद का वर्णन भी वैâसे किया जावेगा और अस्तित्ववादियों के तत्त्वों में दूषण भी कैसे दिया जावेगा ?