ज्ञानमती :
अस्ति-नास्ति से उभयरूप ये, द्रव्य कदापि नहीं होंगे;;क्योंकि विरोध परस्पर इनका, स्याद्वाद विद्वेषी के;;यदि एकांत अवाच्य तत्त्व है, कहो कथन कैसे होगा?;;'तत्त्व अवाच्य' यही कहना तो, वाच्य हुआ स्ववचन बाधा
हे भगवन् ! स्याद्वाद न्याय के विद्वेषी अन्य मतावलम्बियों के यहाँ निरपेक्ष भावाभावात्मक रूप उभयैकांत-पक्ष भी श्रेयस्कर नहीं है, क्योंकि उसमें भी विरोध आता है । यदि कोई एकांत से तत्त्व को अवाच्य-अवक्तव्य ही कहें, तब तो 'तत्त्व अवाच्य है' यह कथन भी नहीं बन सकेगा ।हम स्याद्वादियों के यहाँ तो भाव और अभाव इन दोनों की मान्यता का सप्त-भंगी में तृतीय भंग माना गया है एवं अवक्तव्य को चतुर्थ भंग कहा गया है, क्योंकि हमारे यहाँ कथंचित् पद से सब सुघटित हो जाते हैं किन्तु एकांतवादियों के यहाँ सर्वथा एकांत होने से ये दोनों बातें अघटित हैं । |