+ भाव-अभाव आदि निर्दोष कैसे हैं ? -
कथंचित्ते सदेवेष्टं, कथंचिदसदेव तत्
तथोभयमवाच्यं च, नय-योगान्न सर्वथा ॥14॥
अन्वयार्थ : [ते कथंचित् सत् एव इष्टं तत् कथंचित् असदेव] हे भगवन् ! आपके मत में कथंचित् वस्तु 'सत्' रूप ही है एवं वही वस्तु कथंचित् 'असत्' रूप ही है । [तथा उभयं अवाच्यं न नय योगात् न सर्वथा] तथा वही वस्तु कथंचित् उभयरूप है और कथंचित् 'सत् अवक्तव्य' कथंचित् 'असत् अवक्तव्य' एवं कथंचित् 'सत् असत् अवक्तव्य' भी है, यह सभी व्यवस्था नयों की अपेक्षा से ही मानी गई है, किन्तु सर्वथा ऐसा नहीं है ॥

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


हे भगवन्! तव मत में वस्तू, तत्त्व कथंचित् सत् ही है;;वही कथंचित् असत् रूप ही, उभय कथंचित् वो ही है;;वह अवाच्य भी है नयशैली, से ही सप्तभंगयुत है;;वस्तु सर्वथा अस्तिरूप या, नास्ति आदि से अघटित है
हे भगवन् ! आपके मत में कथंचित् वस्तु सत्-रूप ही है, इष्ट है एवं वही कथंचित् उभय-रूप है और वही कथंचित् अवाच्य-रूप भी है परन्तु यह सब व्यवस्था नयों की अपेक्षा से ही है सर्वथा नहीं है ।