ज्ञानमती :
हे भगवन्! तव मत में वस्तू, तत्त्व कथंचित् सत् ही है;;वही कथंचित् असत् रूप ही, उभय कथंचित् वो ही है;;वह अवाच्य भी है नयशैली, से ही सप्तभंगयुत है;;वस्तु सर्वथा अस्तिरूप या, नास्ति आदि से अघटित है
हे भगवन् ! आपके मत में कथंचित् वस्तु सत्-रूप ही है, इष्ट है एवं वही कथंचित् उभय-रूप है और वही कथंचित् अवाच्य-रूप भी है परन्तु यह सब व्यवस्था नयों की अपेक्षा से ही है सर्वथा नहीं है ।
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