ज्ञानमती :
अपने द्रव्य सुक्षेत्र काल अरु, भाव चतुष्टय से नित ही;;सभी वस्तुएँ अस्तिरूप ही, नास्तिरूप ही हैं वे भी;;परद्रव्यादि चतुष्टय से यह, कौन नहीं स्वीकार करे;;यदि नहिं माने तव मत हे जिन! वस्तु व्यवस्था नहीं बने
स्वद्रव्य, क्षेत्र, काल, भावरूप चतुष्टय की अपेक्षा से सभी वस्तु सत्-रूप ही हैं, ऐसा कौन स्वीकार नहीं करेगा ? एवं पर-द्रव्यादि चतुष्टय की अपेक्षा से सभी वस्तु असत्-रूप ही हैं । यदि ऐसा नहीं स्वीकार करें तो किसी के यहाँ भी अपने-अपने इष्ट-तत्त्व की व्यवस्था नहीं हो सकेगी ।
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