ज्ञानमती :
एक वस्तु में अस्ति धर्म, अपने प्रतिषेधी नास्ति के;;बिना नहिं रह सकता अविनाभावी कहलाता इससे;;क्योंकि विशेषण है जैसे, अन्वय हेतू व्यतिरेक बिना;;नहीं रहे अविनाभावी है, ऐसा यह दृष्टांत बना
एक जीवादि धर्मी में अस्तित्व जो वस्तु का धर्म है, वह प्रतिषेध्य नास्तित्व के साथ अविनाभावी है, क्योंकि विशेषण है, जैसे कि हेतु में भेद विवक्षा से साधम्र्य, वैधम्र्य के साथ अविनाभावी है ॥भावार्थ – जो जिसके बिना नहीं रहता है, उसका उसके साथ अविनाभाव कहा जाता है। प्रत्येक वस्तु में अस्ति धर्म नास्ति के साथ अविनाभावी है । जैसे पुस्तक स्वरूप से है पररूप चौकी आदि से नहीं है । |