+ अभाव भाव के साथ रहता है -
नास्तित्वं प्रतिषेध्येनाऽविनाभाव्येक धर्मिणि
विशेषणत्वाद्वैधम्र्यं यथाऽभेद-विवक्षया ॥18॥
अन्वयार्थ : [एक धर्मिणि नास्तित्वं प्रतिषेध्येनाऽविनाभावि] एक वस्तु में नास्तित्व धर्म अपने विरोधी अस्तित्व के साथ अविनाभावी है [विशेषणत्वात् यथा अभेद विवक्षया वैधम्र्यं] क्योंकि वह विशेषण है जैसे व्यतिरेक हेतु अन्वय के साथ अविनाभावी है ॥

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


एक वस्तु में नास्ति धर्म भी, स्वविरोधी अस्ति के साथ;;अविनाभावी ही रहता है, क्योंकि विशेषण भी वह खास;;जैसे हेतू के प्रयोग में, है व्यतिरेक हेतु नित ही;;अन्वय हेतू के सह रहता, अविनाभावी सुघटित ही
एक धर्मी में नास्तित्व भी अपने प्रतिषेध्य-अस्तित्व के साथ अविनाभावी है, क्योंकि वह विशेषण है, जैसे कि अभेद विवक्षा (अन्वय की अपेक्षा) से किसी अनुमान में वैधम्र्य साधम्र्य के साथ अविनाभावी हैं ॥