ज्ञानमती :
एक वस्तु में नास्ति धर्म भी, स्वविरोधी अस्ति के साथ;;अविनाभावी ही रहता है, क्योंकि विशेषण भी वह खास;;जैसे हेतू के प्रयोग में, है व्यतिरेक हेतु नित ही;;अन्वय हेतू के सह रहता, अविनाभावी सुघटित ही
एक धर्मी में नास्तित्व भी अपने प्रतिषेध्य-अस्तित्व के साथ अविनाभावी है, क्योंकि वह विशेषण है, जैसे कि अभेद विवक्षा (अन्वय की अपेक्षा) से किसी अनुमान में वैधम्र्य साधम्र्य के साथ अविनाभावी हैं ॥
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