+ वस्तु भावाभावात्मक है -
विधेयप्रतिषेध्यात्मा, विशेष्य: शब्दगोचर:
साध्यधर्मो यथा हेतुरहेतुश्चाप्यपेक्षया ॥19॥
अन्वयार्थ : [विशेष्य: विधेयप्रतिषेध्यात्मा शब्दगोचर:] जो विशेषण के द्वारा जानने योग्य है वह विशेष्य है, वह विधि और प्रतिषेध करने योग्य ही होता है क्योंकि वह शब्द का विषय है [यथा साध्यधर्म: हेतु अपेक्षया च अहेतु अपि] जैसे साध्य साध्य का जो धर्म एक विवेक्षा से अहेतु रूप भी हो जाता है ॥

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


वस्तु सदा विधिप्रतिषेधात्मक, है विशेष्य धर्मी विख्यात;;क्योंकि शब्द के गोचर है वह, सत् असत् रूप जग ख्यात;;यथा-साध्य-अग्नी का साधन, धूम अग्नि का हेतू है;;वही अपेक्षा से हेतू भी, जल के लिए अहेतू है
शब्द के विषयभूत विशेष्य-जीवादि समस्त पदार्थ विधि एवं प्रतिषेध इन दोनों धर्मस्वरूप हैं, जैसे कि साध्य का धर्म अपेक्षा से हेतु एवं अहेतु भी होता है ॥