+ अद्वैत एकांत में दोष -
अद्वैतैकान्तपक्षेऽपि, दृष्टो भेदो विरुध्यते
कारकाणां क्रियायाश्च, नैवंâ स्वस्मात्प्रजायते ॥24॥
अन्वयार्थ : [अद्वैतैकांतपक्षेऽपि कारकाणां क्रियायाश्च दृष्ट: भेद: विरुध्यते] यदि अद्वैत रूप एकांत पक्ष लिया जाये, तो कारक और क्रियाओं का जो भेद दिख रहा है, वह विरुद्ध हो जाता है [एकं स्वस्मात् न जायते] क्योंकि कोई भी अपने से ही आप उत्पन्न नहीं हो सकता है ॥

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


यदि अद्वैतरूप है सब जग, यह एकांत लिया जावे;;तब तो कारक और क्रिया का, भेद दिखे वह नहिं पावे;;दिखता है साक्षात् भेद जो, वह भी है विरुद्ध होगा;;क्योंकि एक ही ब्रह्मा ही, निज से उत्पन्न नहीं होता
ब्रह्माद्वैत, शब्दाद्वैत, ज्ञानाद्वैत, चित्राद्वैत आदि अद्वैत एकांत पक्ष में भी कारक और क्रियाओं का देखा गया भेद विरोध को प्राप्त होता है, क्योंकि कोई भी एक (ब्रह्म) अपने से ही आप उत्पन्न नहीं होता है ।