ज्ञानमती :
पुण्य-पाप द्वय, सुख-दुख फल द्वय, इह परलोक द्वैत जग में;;विद्या और अविद्या द्वय अरु, बंध-मोक्ष द्वय नहिं होंगे;;इन द्वैतों में एक द्वैत भी, यदि मानों अद्वैत नहीं;;अत: ब्रह्म या शब्द ज्ञान-मय, जगत् एक-मय घटे नहीं
इस अद्वैत एकांत पक्ष में दो कर्म, दो फल, दो लोक नहीं बन सकते हैं उसी प्रकार से विद्या और अविद्या, बंध और मोक्ष भी घटित नहीं हो सकते हैं ।
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