+ अद्वैत में शुभ-अशुभ आदि द्वैत नहीं बनते -
कर्मद्वैतं फलद्वैतं, लोकद्वैतं च नो भवेत्
विद्याऽविद्याद्वयं न स्याद्बंधमोक्षद्वयं तथा ॥25॥
अन्वयार्थ : [कर्मद्वैतं फलद्वैतं लोकद्वैतं च नो भवेत्] इस अद्वैत सिद्धांत के मानने से शुभ-अशुभ कर्म का युगल, उसके फल-स्वरूप पुण्य-पाप का युगल अथवा सुख-दु:ख का युगल, इहलोक-परलोक का युगल-रूप द्वैत नहीं बन सकता है । [विद्याविद्याद्वयं तथा बंधमोक्षद्वयं न स्यात्] इसी प्रकार विद्या और अविद्या का द्वैत तथा बंध और मोक्ष का द्वैत भी नहीं बन सकता है ।

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


पुण्य-पाप द्वय, सुख-दुख फल द्वय, इह परलोक द्वैत जग में;;विद्या और अविद्या द्वय अरु, बंध-मोक्ष द्वय नहिं होंगे;;इन द्वैतों में एक द्वैत भी, यदि मानों अद्वैत नहीं;;अत: ब्रह्म या शब्द ज्ञान-मय, जगत् एक-मय घटे नहीं
इस अद्वैत एकांत पक्ष में दो कर्म, दो फल, दो लोक नहीं बन सकते हैं उसी प्रकार से विद्या और अविद्या, बंध और मोक्ष भी घटित नहीं हो सकते हैं ।