ज्ञानमती :
द्वैत बिना अद्वैत न होगा, नञ् समास से बना सही;;यथा हेतु के बिना अहेतू, हो सकता है कभी नहीं;; वस्तू का निषेध-प्रतिषेध, योग्य वस्तु बिन बने नहीं;; है निषिद्ध ‘आकाशकुसुम’ फिर भी वह वृक्षों में नित ही
कारिकार्थ-जिस प्रकार से हेतु के बिना अहेतु सिद्ध नहीं है, उसी प्रकार से द्वैत के बिना अद्वैत भी नहीं बन सकता। क्योंकि प्रतिषेध्य-द्वैतादि के बिना अद्वैतरूप का प्रतिषेध भी नहीं हो सकता है।। भावार्थ-द्वैत एक नाम सहित-संज्ञी शब्द है और उसका निषेध करने वाला अद्वैत शब्द है ‘न द्वैतं-अद्वैतं’ के अनुसार अद्वैत द्वैत के बिना नहीं बन सकता है।
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