+ पृथक्त्वैकांत नहीं बनता -
पृथक्त्वैकान्तपक्षेऽपि, पृथक्त्वादपृथक्तु तौ।
पृथक्त्वे न पृथक्त्वं स्यादनेकस्थौ ह्यसौ गुण: ॥28॥
अन्वयार्थ : [पृथक्त्वैकांतपक्षेऽपि पृथक्त्वात् अपृथक्तु तौ] यदि प्रत्येक द्रव्य गुण आदि के पृथक्ता का ही एकांत माना जावे, तो पृथक् गुण से द्रव्यादि के भिन्न होने से वे गुणगुणी अपृथव्â अभिन्न हो जावेंगे [पृथक्त्वे पृथक्त्वं न स्यात् असौ गुण: हि अनेकस्थ:] यदि वे गुण गुणी पृथक् ही हैं, तब तो पृथक् नाम का कोई गुण सिद्ध नहीं होगा, क्योंकि वह एक होते हुए भी अनेकों में स्थित रहने वाला माना गया है। अत: उसके पृथक्त्व रूप में कोई अस्तित्व नहीं बनता है।।

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


इस पृथक्त्वैकांत पक्ष में, द्रव्य गुणों से पृथक्त्व गुण;; अपृथक् है या पृथक् कहो यदि, अपृथक् है तब पक्ष अघट;; यदी कहो यह द्रव्य गुणों से, अलग पड़ा तब सिद्ध नहीं;; क्योंकि एक अनेकों में यह, रहता अत: असिद्ध सही
कारिकार्थ-पृथक्त्वैकांत पक्ष में भी पृथक्त्वगुण से पदार्थों को भिन्न मानने पर पृथक्-पृथक् रूप रहे हुए पदार्थ गुण और गुणी सब अपृथक्-अभिन्न हो जायेंगे। एवं सभी को पृथक्त्व-भिन्न-भिन्न मानने पर पृथक्त्वगुण की सिद्धि नहीं हो सकेगी, क्योंकि यह पृथक्त्व गुण अनेक पदार्थों में रहने वाला माना गया है॥