
ज्ञानमती :
सत्यज्ञान के गोचर होते, अस्तिरूप हैं भेद-अभेद!;; कल्पितरूप नहीं है क्योंकि, ये प्रमाण के विषय जिनेश!;; एक वस्तु में मुख्य गौण से, दोनों रहते अविरोधी;;जिनकी जहाँ विवक्षा हो वह, मुख्य दूसरा गौण सही
ये दोनों भेद और अभेद प्रमाण के विषय होने से सत् रूप हैवास्तविक है, संवृतिरूप-काल्पनिक नहीं है। हे भगवन्! आपके शासन में ये भेदाभेद एक ही जीवादि वस्तु में गौण और मुख्य की विवक्षा से विरोध रहित हैं।।
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