+ एक वस्तु में भेद और अभेद दोनों केसे होंगे ? -
प्रमाणगोचरौ सन्तौ, भेदाभेदौ न संवृती
तावेकत्राऽविरुद्धौ ते, गुणमुख्यविवक्षया ॥36॥
अन्वयार्थ : [भेदाऽभेदौ प्रमाणगोचरौ सन्तौ न संवृती] ये भेद और प्रमाण के विषय हैं और सत् रूप हैं, संवृति रूप नहीं हैं [ते गुणमुख्यविवक्षया तौ एकत्रअविरुद्धौ] हे भगवन्! आपके मत में गौण और मुख्य की अपेक्षा से ये दोनों एक ही वस्तु में अविरोध रूप से रहते हैं। अर्थात् चार कारिका तक अद्वैत और पृथक्त्व का अनेकांत सिद्ध किया है।

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


सत्यज्ञान के गोचर होते, अस्तिरूप हैं भेद-अभेद!;; कल्पितरूप नहीं है क्योंकि, ये प्रमाण के विषय जिनेश!;; एक वस्तु में मुख्य गौण से, दोनों रहते अविरोधी;;जिनकी जहाँ विवक्षा हो वह, मुख्य दूसरा गौण सही
ये दोनों भेद और अभेद प्रमाण के विषय होने से सत् रूप हैवास्तविक है, संवृतिरूप-काल्पनिक नहीं है। हे भगवन्! आपके शासन में ये भेदाभेद एक ही जीवादि वस्तु में गौण और मुख्य की विवक्षा से विरोध रहित हैं।।