+ वस्तु को सर्वथा नित्य मानने में दोष -
नित्यत्वैकान्तपक्षेऽपि, विक्रिया नोपपद्यते
प्रागेव कारकाभाव:, क्व प्रमाणं क्व तत्फलम् ॥37॥
अन्वयार्थ : [नित्यत्वैकांतपक्षे अपि विक्रिया न उपपद्यते] यदि सर्वथा सभी वस्तुओं को नित्य ही माना जाये, तब तो कुछ भी क्रिया आदि परिवर्तन नहीं होंगे [प्रागेव कारकाभाव: क्व प्रमाणं क्व तत्फलं] क्योंकि नित्य में पहले ही कत्र्ता-कर्मआदि कारकों का अभाव है पुन: प्रमाण कहाँ रहेगा और जब प्रमाण नहीं होगा, तब उसका फल भी कहाँ रहेगा ?

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


यदि सर्वथा सभी वस्तु हैं, नित्य कहो तब क्या होगा;;हलन, चलन परिणमनरूप, विक्रिया कार्य केसे होगा;;कत्र्तादि कारक के पहले, ही अभाव होगा निश्चित;;ज्ञाता बिन फिर ज्ञान कहाँ, अरु कहाँ ज्ञान का फल सुघटित ?
नित्यत्वैकांत पक्ष में भी परिणमन स्वरूप एवं परिस्पंदरूप विविध क्रियाएँ नहीं हो सकती हैं क्योंकि कार्य की उत्पत्ति के पहले से ही कारक का अभाव है एवं कारक के अभाव में प्रमाण भी कहाँ रहेगा ? और उसका फल भी कहाँ रहेगा ?

भावार्थ-जब सभी जीवादि पदार्थ सर्वथा नित्य हैं, तब उनमें किसी भी प्रकार का परिणमन, एक अवस्था से दूसरी अवस्था को प्राप्त करना आदि नहीं बन सकता है। कथंचित् अनित्य मानने से ही जीव का जन्म, मरण, बचपन से युवावस्था आदि परिवर्तन घटित नहीं होंगे, सर्वथा में नहीं बनेंगे।