
ज्ञानमती :
इन्द्रिय द्वारा विषयों की है, अभिव्यक्ति जैसे वैसे;;कारक और प्रमाणों द्वारा, वे अव्यक्त प्रगट होते;;ये प्रमाण कारक दोनों ही, नित्य सर्वथा सांख्य कहें;;भगवन्! तव शासन से बाहर, विधि क्रिया भी हो केसे?
जिस प्रकार इन्द्रियों के द्वारा अर्थ अपने-अपने विषय के पदार्थ अभिव्यक्त किये जाते हैं, उसी प्रकार प्रमाण और कारकों के द्वारा व्यक्त-महान, अहंकार आदि तत्त्व अभिव्यक्त किये जाते हैं। इस प्रकार से यदि सांख्य कहें तो उचित नहीं है। उनके यहाँ प्रमाण और कारक तो सर्वथा नित्य हैं, इसलिएहे भगवन्! आपके शासन से बहिर्भूत उन सांख्यों के यहाँ विकार्य-अभिव्यक्तिया अवस्था परिणमन केसे हो सकता है ? अर्थात् किसी भी प्रकार का अभिव्यक्ति- रूप भी परिणमन नहीं हो सकता है।
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