+ प्रमाण और कारकों के नित्य होने में विक्रिया केसी ? -
प्रमाणकारकैव्यर्कतम, व्यक्तं चेदिन्द्रियार्थवत्
ते च नित्ये विकार्यं किम, साधोस्ते शासनाद्बहि: ॥38॥
अन्वयार्थ : [इन्द्रियार्थवत् प्रमाणकारकै: व्यक्तं व्यक्तं चेत्] जिस प्रकार से इन्द्रियाँ अपने विषय को व्यक्त करती हैं, उसी प्रकार से यदि प्रमाण और कारकों के द्वारा व्यक्त को अभिव्यक्त-प्रकट किया जाता है, तब तो [ते च नित्ये ते साधो: शासनाद्बहि: किम विकार्यं] आपके यहाँ वे प्रमाण और कारक सर्वथा नित्य हैं अत: हे साधो! आपके शासन से बहिर्भूत जनों के यहाँ व्यक्त को प्रकट करने रूप से भी विक्रिया केसे बन सकेगी ?

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


इन्द्रिय द्वारा विषयों की है, अभिव्यक्ति जैसे वैसे;;कारक और प्रमाणों द्वारा, वे अव्यक्त प्रगट होते;;ये प्रमाण कारक दोनों ही, नित्य सर्वथा सांख्य कहें;;भगवन्! तव शासन से बाहर, विधि क्रिया भी हो केसे?
जिस प्रकार इन्द्रियों के द्वारा अर्थ अपने-अपने विषय के पदार्थ अभिव्यक्त किये जाते हैं, उसी प्रकार प्रमाण और कारकों के द्वारा व्यक्त-महान, अहंकार आदि तत्त्व अभिव्यक्त किये जाते हैं। इस प्रकार से यदि सांख्य कहें तो उचित नहीं है। उनके यहाँ प्रमाण और कारक तो सर्वथा नित्य हैं, इसलिएहे भगवन्! आपके शासन से बहिर्भूत उन सांख्यों के यहाँ विकार्य-अभिव्यक्तिया अवस्था परिणमन केसे हो सकता है ? अर्थात् किसी भी प्रकार का अभिव्यक्ति- रूप भी परिणमन नहीं हो सकता है।