+ नित्य एकांत में पुण्य पापादि भी असंभव हैं -
पुण्य-पापक्रिया न स्यात्, प्रेत्यभाव: फलं कुत:
बन्ध-मोक्षौ च तेषां न, येषां त्वं नाऽसि नायक: ॥40॥
अन्वयार्थ : [येषां त्वं नायक: न असि] हे भगवन्! जिनके आप स्वामी नहीं हैं [तेषां पुण्यपापक्रिया न स्यात्] उनके यहाँ पुण्य और पाप क्रियाएँ नहीं हो सकती हैं [प्रेत्यभावं फलं कुत: बंधमोक्षौ च न] पुण्य पाप के फलस्वरूप परलोक गमन भी केसे होगा? पुन: बंध और मोक्ष की व्यवस्था भी नहीं बन सकेगी।

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


नित्यैकांत पक्ष में शुभ अरु अशुभ क्रिया भी नहिं होवे;;नहिं होगा परलोकगमन फिर, सुख-दु:ख फल केसे होवे;; कर्मबंध अरु मोक्ष व्यवस्था, भी उनके मत में नहिं है;; हे भगवन्! जिनके तुम स्वामी, नहीं उन्हें सब दुर्घट है
सर्वथा नित्य पक्ष में पुण्य, पापरूप क्रिया नहीं हो सकती है। उसके अभाव में परलोक एवं सुख-दु:खादि फल भी केसे हो सकते हैं ? हे भगवन ्! जिनके आप नायक-स्वामी नहीं हैं उनके यहाँ बंध और मोक्ष भी नहीं हो सकते हैं।