+ क्षणिक एकांत भी असंभव है -
क्षणिकैकान्तपक्षेऽपि, प्रेत्यभावाद्यसंभव:
प्रत्यभिज्ञाद्यभावान्न, कार्यारम्भ: कुत: फलम् ॥41॥
अन्वयार्थ : [क्षणिकैकांत पक्षेऽपि प्रेत्यभावाद्य संभव:] यदि वस्तु को सर्वथा क्षणिक रूप ही माना जाये, तो भी परलोक गमन आदि असंभव ठहरते हैं [प्रत्यभिज्ञाद्यभावात् कार्यारंभ: न फलं कुत:] और प्रत्यभिज्ञान, स्मरण, अनुमान आदि ज्ञानों का अभाव हो जाने से कार्य का आरंभ भी नहीं हो सकेगा पुन: कार्य के अभाव में सुख-दु:खादि फल भी केसे बन सकेगे ?

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


क्षणिकैकांत पक्ष में भी, परलोकगमन कैसे होगा?;;बंध-मोक्ष प्रक्रिया असंभव, है फिर धर्म कहाँ होगा?;;प्रत्यभिज्ञान असंभव, है स्मृति अनुमान कहाँ?;;पुन: कार्य आरंभ न होगा, फल भी उसका रहा कहाँ?
क्षणिकैकांत पक्ष में भी प्रेत्यभाव आदि असंभव हैं, क्योंकि प्रत्यभिज्ञान आदि का अभाव होने से कार्यादि का आरंभ नहीं हो सकता है पुन: फल कैसे हो सकेगा ?

भावार्थ-प्रत्येक वस्तु को यदि सर्वथा क्षण-क्षण में नष्ट होने वाली मान लिया जावे, तब तो आत्मा का अस्तित्व कुछ काल के लिए भी नहीं रह सकता है। पुन: पुण्य-पाप, बंध-मोक्ष, परलोक-गमन आदि किसको होंगे और स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, अनुमान आदि के न होने से कोई भी व्यक्ति कुछ भी कार्य कैसे करसकेगा एवं उसका फल सुख-दु:ख भी कैसे भोगेगा? अर्थात् क्षणिकैकांत में भी कुछ भी व्यवस्था नहीं बन सकती है।