+ प्रमाण का लक्षण और भेद -
तत्त्वज्ञानं प्रमाणं ते, युगपत्सर्वभासनम्
क्रमभावि च यज्ज्ञानं, स्याद्वादनयसंस्कृतम् ॥101॥
अन्वयार्थ : [ते तत्त्वज्ञानं प्रमाणं युगपत् सर्वभासनं] हे भगवन्! आपके तत्त्वज्ञान को प्रमाण कहा है, उसमें युगपत् सर्व पदार्थों को प्रकाशित करने वाला ज्ञान केवलज्ञान है [क्रमभावि च यज्ज्ञानं स्याद्वादनयसंस्कृतं] और क्रम से उत्पन्न होने वाले जो ज्ञान हैं वे स्याद्वाद और नयों से संस्कृत हैं।

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


भगवन्! तव शासन में तत्त्वज्ञान प्रमाण कहा जाता;;उसमें युगपत् सर्वप्रकाशी, केवलज्ञान कहा जाता;;क्रमभावी हैं मतिज्ञानादिक, तत्त्व प्रमाणीभूत सही;;स्याद्वाद से नय से संस्कृत, जो क्रमभावी ज्ञान वही
हे भगवन्! आपके सिद्धान्तानुसार तत्त्वज्ञान ही प्रमाण है, उसमें युगपत् सर्वपदार्थों का अवभासन करने वाला ज्ञान केवलज्ञान है एवं क्रमभावी जो ज्ञान हैं वे स्याद्वाद और नय से संस्कृत मतिश्रुतज्ञानादि हैं।