+ प्रमाणों का फल क्या है ? -
उपेक्षा फलमाद्यस्य, शेषस्यादानहानधी:
पूर्वं वाऽज्ञाननाशो वा, सर्वस्याऽस्य स्वगोचरे ॥102॥
अन्वयार्थ : [आद्यस्य फलं उपेक्षा शेषस्य आदानहानधी:] आदि के केवल-ज्ञान का फल उपेक्षा है एवं शेष क्रमवर्ती ज्ञानों का फल ग्रहण योग्य को ग्रहण करना और छोड़ने योग्य को छोड़ना इस बुद्धि का होना है [सर्वस्य अस्य पूर्वा वा स्वगोचरे अज्ञाननाशो वा] अथवा सभी ज्ञानों का फल उपेक्षा है अथवा सभी ज्ञानों का फल अपने-अपने विषय में अज्ञान का अभाव होना ही है।

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


केवलज्ञान प्रमाणरूप का, कहा उपेक्षा फल जानो;;शेषज्ञान क्रमभावी का फल, ग्रहण त्याग बुद्धी मानों;;अथवा क्रमभावी ज्ञानों का, कहा उपेक्षा फल यदि वा;;सब ज्ञानों का फल स्व-स्व, विषयक अज्ञान नाश होना
केवलज्ञान का व्यवहित फल उपेक्षा, शेष, मति, श्रुत आदि चारों ज्ञानों का व्यवहित फल ग्रहण करने योग्य को ग्रहण करना, छोड़ने योग्य को छोड़ना तथा उपेक्षा करना है एवं इन पाँचों ज्ञानों का ही साक्षात् फल अपनेअपने विषयभूत पदार्थों में अज्ञान का नाश होना ही है।