+ ‘स्यात्’ शब्द का महत्व -
वाक्येष्वनेकान्तद्योती गम्यं प्रति विशेषणम्
स्यान्निपातोऽर्थयोगित्वात्तव केवलिनामपि ॥103॥
अन्वयार्थ : [तव केवलिनां अपि स्यात् निपातो अर्थयोगित्वात्] हे भगवन्! आपके तथा श्रुतकेवलियों के भी मतानुसार ‘स्यात्’ यह निपात शब्द है जो कि अर्थ के साथ संबंधित है [वाक्येषु अनेकांतद्योती गम्यं प्रति विशेषणम्] यह वाक्यों में अनेकांत का द्योतक तथा गम्य रूप अर्थ के प्रति विशेषण माना गया है।

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


नाथ! आपके या श्रुतकेवलि मुनियों के भी वाक्यों में;;स्यात् शब्द है निपात् चूँकि, अर्थ साथ संबंधित है;;इसीलिए यह सब वाक्यों में, ‘अनेकांत’ का द्योतक है;;गम्य वस्तु के प्रती विशेषण, अर्थ विवक्षित सूचक है
हे भगवन्! श्रुत केवलियों के सिद्धान्त में एवं आप केवलज्ञानी के सिद्धांतानुसार ‘‘स्यात्’’ यह शब्द निपात सिद्ध है वाक्यों में अनेकांत काउद्योतन करने वाला है और गम्य-अर्थ के प्रति समर्थ विशेषण रूप है क्योंकि यह अपने अर्थ से रहित है।