
ज्ञानमती :
सदा सर्वथैकांत त्याग से, स्याद्वाद है सुखकर ही;;स्यात्-कथंचित् और कथंचन, शब्दों से एकार्थ सही;;सप्तभंग अरु सभी नयों की, सदा अपेक्षा रखता है;;सभी वस्तु में हेय और आदेय व्यवस्था करता है
सर्वथा एकांत के त्याग से ही स्याद्वाद होता है और कथंचित् आदि इसके पर्यायवाची ही हैं। यह सप्तभंग नयों की अपेक्षा रखने वाला है और हेय उपादेय की विशेष व्यवस्था करने वाला है।
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