+ स्याद्वाद का स्वरूप -
स्याद्वाद: सर्वथैकान्त-त्यागात् किमवृतचिद्विधि:
सप्तभंगनयापेक्षो हेयाऽऽदेयविशेषक: ॥104॥
अन्वयार्थ : [स्याद्वाद: सर्वथैकांतत्यागात् किम वृत्तचिद्विधि:] यह ‘स्याद्वाद’ पद सर्वथा एकांत का त्याग करने वाला है किम शब्द से चित् अव्यय लगकर जा शब्द ‘कथंचित्’ आदि निष्पन्न होते हैं, वे इसके पर्यायवाची हैं (सप्तभंग नयापेक्षो हेयादेयविशेषक:) यह स्याद्वाद सप्तभंग और नयों की अपेक्षा रखने वाला है तथा हेय और उपादेय का भेद करने वाला होता है।

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


सदा सर्वथैकांत त्याग से, स्याद्वाद है सुखकर ही;;स्यात्-कथंचित् और कथंचन, शब्दों से एकार्थ सही;;सप्तभंग अरु सभी नयों की, सदा अपेक्षा रखता है;;सभी वस्तु में हेय और आदेय व्यवस्था करता है
सर्वथा एकांत के त्याग से ही स्याद्वाद होता है और कथंचित् आदि इसके पर्यायवाची ही हैं। यह सप्तभंग नयों की अपेक्षा रखने वाला है और हेय उपादेय की विशेष व्यवस्था करने वाला है।