+ स्याद्वाद और केवलज्ञान में क्या अंतर है ? -
स्याद्वादकेवलज्ञाने सर्वतत्त्वप्रकाशने
भेद: साक्षादसाक्षाच्च, ह्यवस्त्वन्यतमं भवेत् ॥105॥
अन्वयार्थ : [स्याद्वादकेवलज्ञाने सर्वतत्त्वप्रकाशने] स्याद्वाद और केवलज्ञान दोनों ही सभी तत्त्वों के प्रकाशक हैं [भेद: साक्षात् असाक्षात् च अन्यतमं हि अवस्तु भवेत्] इन दोनों के प्रकाशन में पदार्थों का साक्षात् करने और साक्षात् न करने का ही अंतर है इन दोनों ज्ञानों में से जो वस्तु किसी ज्ञान के द्वारा प्रकाशित नहीं होती है, वह अवस्तु कहलाती है।

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


स्याद्वाद कैवल्यज्ञान ये, सभी तत्त्व के परकाशक;;स्याद्वाद सब परोक्ष जाने, केवलज्ञान प्रत्यक्ष प्रगट;;अंतर इतना ही इन दोनों, में परोक्ष-प्रत्यक्ष कहा;;इन दोनों से नहीं प्रकाशित, अर्थ अवस्तूरूप हुआ
स्याद्वाद और केवलज्ञान ये दोनों ही सम्पूर्ण तत्त्वों को प्रकाशित करने वाले हैं। इन दोनों में अन्तर इतना ही है कि केवलज्ञान साक्षात् सम्पूर्ण तत्त्वों का प्रकाशक है एवं स्याद्वाद असाक्षात् परोक्षरूप से प्रकाशक है, क्योंकि इन दोनों के बिना प्रकाशित वस्तु अवस्तु रूप ही है।