+ द्रव्य का स्वरूप -
नयोपनयैकान्तानां, त्रिकालानां समुच्चय:
अविभ्राड्भावसम्बन्धो, द्रव्यमेकमनेकधा ॥107॥
अन्वयार्थ : [त्रिकालानां नयोपनयैकान्तानां समुच्चय:] त्रिकालवर्ती नय और उपनयों के एकांत विषयों का जो समुच्चय है [अविभ्राट् भावसंबंध: द्रव्यं एकं अनेकधा] वह कथंचित् तादात्म्य स्वभाव के संबंध को लिए हुए है उसी का नाम द्रव्य है वह द्रव्य एक है और अनेक भेदरूप है।

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


त्रिकालवर्ती नय-उपनय के, एकांतों का जो समुदाय;;अपृथक् है तादात्म्य भावयुत, वही द्रव्य है सहज स्वभाव;;द्रव्य कहा यह एकरूप भी, और अनेकरूप भी है;;अनंतधर्मा द्रव्य के इक-इक, धर्म कहे नय वो ही हैं
त्रिकाल विषयक, नय और उपनयों के एकांत का जो समुच्चय है और अविभ्राड् भाव संबंध-अपृथक् स्वभाव संबंधरूप है वही द्रव्य है और वह एक भी है अनेक प्रकार का भी है।

भावार्थ-द्रव्य और पर्याय के भेद से नय के अनेक भेद हैं वस्तु के एक अंश को ग्रहण करने वाले वक्ता के अभिप्राय विशेष को नय कहते हैं एवं नयों की शाखा-उपशाखा को उपनय कहते हैं। अनंतधर्म विशिष्ट वस्तु के एक धर्म को ही ग्रहण करना इनका एकांत है त्रिकालवर्ती इन नय और उपनयों का विषयभूत जो पर्याय विशेषों का समुदाय है वह द्रव्य है, वह एकानेक स्वरूप है। यह समुदाय कथंचित् तादात्म्य संबंध रूप है।