+ मिथ्यानय-सम्यकनय का लक्षण -
मिथ्यासमूहो मिथ्या चेन्न मिथ्यैकान्ततास्ति न:
निरपेक्षा नया मिथ्या, सापेक्षा वस्तु तेऽर्थकृत ॥108॥
अन्वयार्थ : [मिथ्या समूहो मिथ्या चेत् न: मिथ्यैकांतता न अस्ति] यदि कहो कि नयों और उपनयों के एकांतों का जो समूह है वह मिथ्याओं का समूह है वह मिथ्या ही है यदि ऐसा कहो तो ठीक नहीं है, क्योंकि हमारे यहाँ मिथ्या एकांतता नहीं है [ते निरपेक्षा नया मिथ्या सापेक्षा अर्थकृत् वस्तु] हे भगवन्! आपके मत में जो नय परस्पर में निरपेक्ष हैं वे मिथ्या हैं एवं जो नय परस्पर में सापेक्ष हैं वे सम्यक हैं उनके विषय में अर्थक्रियाकारी हैं इसलिए उनका समूह ही वस्तु है।

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


यदि मिथ्या एकांतों का, समुदाय हुआ वह मिथ्या ही;;तब तो सदा हमारे मत में, वह मिथ्या एकांत नहीं;;नय निरपेक्ष कहे मिथ्या हैं, नय सापेक्ष कहे सम्यक;;सुनय अर्थ क्रियाकारी हैं, उसका समुदय है सम्यक्
मिथ्याभूत एकांत का समुदाय यदि मिथ्यारूप ही है तब तो वह मिथ्या एकांत हम जैनियों के यहाँ नहीं है। हे भगवन्! आपके मत में निरपेक्ष नय मिथ्या हैं और सापेक्ष नय वस्तु हैं, अर्थक्रियाकारी हैं।