+ वस्तु को विधि आदि के द्वारा कहते है -
नियम्यतेऽर्थो वाक्येन विधिना वारणेन वा
तथाऽन्यथा च सोऽवश्य-मविशेष्यत्वमन्यथा ॥109॥
अन्वयार्थ : [विधिना वारणेन वा वाक्येन अर्थ: नियम्यते] विधि वाक्य अथवा निषेध वाक्य के द्वारा पदार्थ का नियम किया जाता है [स: तथा अन्यथा च अवश्यं अन्यथा अविशेष्यं] जो अर्थ जिस वाक्य से निश्चित है वह अन्यथारूप होने से विशेष्य न होकर अविशेष्य ही है।

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


विधिवाक्य या निषेधवाक्यों से, पदार्थ का कथन सही;;विधिवाक्य से वस्तु अस्ति है, निषेध वच से नास्ति कही;; यदि ऐसा नहिं मानों तब तो, वस्तु विशेषण शून्य रही;;पुन: विशेष्य नहीं होने से, वस्तु ‘अवस्तू’ असत् हुई
विधि वाक्य अथवा निषेध वाक्य के द्वारा अर्थ का निश्चय किया जाता है। यह अर्थ विधि वाक्य से विधि और प्रतिषेध वाक्य से प्रतिषेध रूपसिद्ध है, अन्यथा-एकांत रूप से विचार करने पर तो अर्थ के सत्त्व-असत्त्व में भेद ही नहीं हो सकेगा।

भावार्थ-प्रत्येक वस्तु विधीवाक्य अथवा निषेध वाक्य के द्वारा प्रसिद्ध है विधिवाक्य से वस्तु अस्तिरूप है एवं निषेध वाक्य से नास्तिरूप है। यदि ऐसा न मानो तो वह वस्तु किसी भी विशेषण से कही नहीं जा सकेगी।