+ उभयात्मक वस्तु को एक रूप कहना मिथ्या है -
तदतद्वस्तुवागेषा, तदेवेत्यनुशासती
न सत्या स्यान्मृषावाक्यै:, कथं तत्त्वार्थदेशना ॥110॥
अन्वयार्थ : [तत् अतत् वस्तु तत् एव इति अनुशासती एषा वाक् सत्या न स्यात्] प्रत्येक वस्तु तत् अतत् रूप हैं किन्तु वस्तु ‘तत् रूप ही है’ इस प्रकार से कहने वाले वचन सत्य नहीं हैं (मृषावाक्यै: तत्त्वार्थदेशना कथं) अत: मृषा वचनों से तत्त्वार्थ का उपदेश कैसे हो सकता है।

  ज्ञानमती 

ज्ञानमती :


वस्तू तत् अरु अतत् रूप है, परन्तु जो ‘तत्’ ही कहते;;ऐसे वच तो असत्य ही हैं, चूँकि वस्तु ‘अतत्’ भी है;;पुन: मृषा वचनों से कैसे, तत्त्वों का उपदेश घटे;;विधीवाक्य से अस्ति मात्र ही, कोई पदारथ नहीं दिखे
ये वचन ‘‘तत्, अतत्’’ स्वभाव वाली वस्तु का प्रतिपादन करते हैं, यदि वचन वह ही है, इस प्रकार स्वरूप के समान पररूप से भी विधिरूप मात्र ही वस्तु को प्रतिपादित करें तब तो वे वचन असत्य हो जायेंगे पुन:असत्य वचनों से तत्त्वार्थ का उपदेश कथन कैसे हो सकेगा ?

भावार्थ-विधिवादी वेदांती लोगों का कहना है कि वचन केवल वस्तु के अस्तित्व को ही कहते हैं, किन्तु यह बात गलत है, क्योंकि प्रत्येक वस्तु विधिनिषेध आदि रूप से अनंत धर्मात्मक है और प्रत्येक वचन अपने अर्थ को कहते हुए अन्य अर्थ का निषेध अवश्य कर देते हैं।