अभयचन्द्रसूरि :
तात्पर्यवृत्ति-सौगत के द्वारा परिकल्पित जो बाह्य-अचेतन और अंतरंग-चेतन वस्तुएं हैं जो कि निरंश हैं वे प्रत्यक्ष के ज्ञान का विषय नहीं हैं। यहाँ द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के विभाग को अंश कहते हैं उनसे निष्क्रांत-रहित वस्तु निरंश कहलाती है। प्रश्न-ये निरंश चेतन-अचेतन आदि क्यों प्रमाण के विषय नहीं हैं ? उत्तर-क्योंकि वह निरंशपना प्रतिभासित नहीं होता है अर्थात् अनुभव में नहीं आता है। द्रव्य, क्षेत्र आदि के विभाग से रहित चेतन अथवा अचेतन तत्त्व प्रत्यक्षज्ञान में प्रतिभासित होते हैं। उस ज्ञान में नित्यानित्यादि अनेक अंशों में व्यापी होने रूप वस्तु की प्रतीति होती है इसलिए प्रत्यक्ष से असिद्ध उस निरंश वस्तु का कौन स्वभाव-धर्म हेतु हो सकेगा अर्थात् कोई भी स्वभाव हेतु नहीं होगा क्योंकि जो प्रमाण से असिद्ध है वह अहेतु है-हेतु नहीं हो सकता है। और उस निरंश का क्या कार्य है जो कि हेतु हो सके क्योंकि सर्वथा निरंश और अपरिणामी में काय कारण भाव का अभाव है। ‘प्यतोऽनुमा’-कि जिससे अनुमान हो सके यह आक्षेप वचन है अर्थात् किसी प्रकार से भी अनुमान नहीं बन सकता है इसलिए सौगत के मत में अनुमान, प्रमाणता को नहीं प्राप्त होता है। अनुपपत्ति होने से अर्थात् इनके यहाँ अनुमान प्रमाण घटित नहीं होता है। भावार्थ-बौद्ध ने चेतन-अचेतन सभी वस्तुओं को द्रव्यक्षेत्रादि अंश भागों से रहित निरंश माना है अतएव आचार्य कहते हैं कि उस निरंश का स्वभाव तो क्या है और कार्य भी क्या है ? उसमें कुछ स्वभाव मानें तो अंश कल्पना हो जायेगी और उसका कुछ कार्य मानें तो कार्य-कारण भाव से भी अंशकल्पना हो जाती है और जब उसका स्वभाव तथा कार्य सिद्ध नहीं हुआ, तब स्वभाव हेतु कार्य हेतु के बिना अनुमान का होना सुतरां असंभव है जैसे कि बंध्या के पुत्र के बिना उसको आकाश के पूâलों की माला पहनाना असंभव है। |