अभयचन्द्रसूरि :
तात्पर्यवृत्ति-प्रतिबंध को नहीं देखने वालों को अर्थात् शब्द और अर्थ के सहज योग्यता लक्षण संबंध को नहीं समझने वाले सौगतों को प्राय: क्वचित्-कदाचित् श्रुत-आगम के विसंवाद से यदि सर्वत्र-अविसंवादी श्रुत की प्रमाणता में विसंवाद हो जावे, तब तो वह अविश्वास समान है। प्रश्न-किसके समान है ? उत्तर-अक्ष-इन्द्रियाँ और लिंग-हेतु इनसे उत्पन्न होने वाले सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष और अनुमान ज्ञानों के समान है अर्थात् इन प्रत्यक्ष और अनुमान ज्ञानों में भी क्वचित्-कदाचित् व्यभिचारी दिखने से अविश्वास हो जावेगा, यह अर्थ हुआ है। प्रश्न-अदुष्ट-निर्दोष कारण से जन्य प्रत्यक्ष अथवा अनुमान ज्ञान पदार्थों में विसंवाद को प्राप्त नहीं होते हैं ? उत्तर-यदि ऐसी बात है तो अदुष्ट-निर्दोष आप्त वचन से उत्पन्न हुआ श्रुत भी विसंवाद को क्यों प्राप्त होगा ? इस प्रकार दोनों जगह समान ही है। भावार्थ-सौगत आगम को प्रमाण नहीं मानता है। आचार्यों ने समझाया है कि शब्द और अर्थ में एक सहज योग्यता लक्षण संबंध पाया जाता है। इस निमित्त से वह श्रुतज्ञान सर्वत्र अप्रमाणीक नहीं है अन्यथा प्रत्यक्ष और अनुमान ज्ञान भी सर्वत्र अप्रमाणीक हो जावेंगे। यदि कोई कहे कि निर्दोष कारण से उत्पन्न होने से प्रत्यक्ष और अनुमान ज्ञान नहीं है, तब तो हमारे यहाँ भी निर्दोष कारणरूप आप्त के वचन से उत्पन्न हुआ आगम रूप श्रुतज्ञान प्रमाणीक है, यह अर्थ हुआ। |