+ ‘विषय अकारण नहीं होता है’ इस बौद्धमत का निराकरण करने के लिए अर्थ को कारण मानने का खंडन करते हैं -
अयमर्थ इति ज्ञानं विद्यान्नोत्पत्तिमर्थत:।
अन्यथा न विवाद: स्यात्कुलालादिघटादिवत्॥3॥
अन्वयार्थ : अन्वयार्थ-[ अयं अर्थ: इति ज्ञानं] यह अर्थ है इस प्रकार का ज्ञान [अर्थत: उत्पत्तिं] अर्थ से अपनी उत्पत्ति को [न विद्यात्] नहीं जानता है [अन्यथा] अन्यथा [कुलालादिघटादिवत्] कुंभकार आदि से घटादि उत्पत्ति के ज्ञान के समान [विवाद: न स्यात्] विवाद नहीं होना चाहिए॥३॥

  अभयचन्द्रसूरि 

अभयचन्द्रसूरि :

तात्पर्यवृत्ति-‘यह अर्थ है’ इस प्रकार ज्ञान नहीं जानता है अर्थात् मैं इस घटादि अर्थ से उत्पन्न हुआ हूँ इस प्रकार ज्ञान अपने जन्म को नहीं जानता है। ये घटादि पदार्थ प्रमेय हैं यह बात प्रतीति सिद्ध ही है अन्यथा यदि ज्ञान अर्थ से अपनी उत्पत्ति को जानता है तब वादी और प्रतिवादी को विवाद नहीं होना चाहिए अर्थात् ज्ञान अर्थ से उत्पन्न नहीं हुआ है ऐसा विसंवाद नहीं होना चाहिए। जैसे-वुंâभकार आदि से घट आदि की उत्पत्ति होना प्रतीति से सिद्ध है तो उसमें किसी को विवाद नहीं है, उसी प्रकार से अर्थ से ज्ञान के उत्पन्न होने में विवाद नहीं होना चाहिए किन्तु विवाद देखा जाता है। स्याद्वादी लोग अर्थ से ज्ञान की उत्पत्ति नहीं मानते हैं।

विशेषार्थ-अर्थ१ और आलोक ज्ञान की उत्पत्ति में कारण नहीं हैं वे तो ज्ञान के विषय हैं अंधकार के समान। ज्ञान की उत्पत्ति तो आत्मा के ज्ञानावरण आदि के क्षयोपशम या क्षय से ही होती है, ऐसा समझना।