अभयचन्द्रसूरि :
तात्पर्यवृत्ति-ज्ञान ही केवल अर्थ का ही नहीं, सन्निकर्ष का भी निश्चय कराने वाला है। चक्षु आदि इंद्रियाँ हैं और रूपादि अर्थ हैं इनका सन्निधि-सन्निकर्ष और अन्वय-व्यतिरेक अर्थात् भाव और अभाव का सन्निकर्ष तथा कारण कार्य का भी सन्निकर्ष होता है। कार्य - सन्निकर्ष कारण-इन्द्रिय आदि हैं । इनका भी ज्ञान ही निश्चय कराने वाला है इसलिए वह ज्ञान ही प्रमाण है सन्निकर्षादि प्रमाण नहीं हैं क्योंकि वे प्रमेयरूप हैं। |